संगीत, योग और आयुर्वेद

संगीत सम्पूर्ण जीवन का आधार है। इससे प्रकृति भी आबद्ध है। मनुष्य के अस्तित्व के साथ ही संगीत विकसित हुआ है। मनुष्य में कलाओं के विकास का आदि रूप संगीत ही है। चित्रकला, नृत्य, साहित्य आदि उसके बाद आए। मनुष्य के रुदन-हास का रचाव संगीत से है। उसके उत्सव और शोक संगीत से आबद्ध हैं। संगीत, साहित्य और कलाओं के समस्त माध्यम मनुष्य की समस्त अनुभूतियों और अभिव्यक्तियों के माध्यम हैं।
योग का आगमन मनुष्य जीवन में बहुत बाद में हुआ। योग का सीधा संबंध संगीत से नहीं है। योग और संगीत पूरक नहीं है। संगीत योग का रूप नहीं है। योग को कालांतर में सभी विधाओं-कलाओं पर आरोपित किया गया है, जबरन थोपा गया है। योग संगीत का एक अंग हो सकता है। संगीत के लिए जो अनुशासन चाहिए योग उसमें मददगार हो सकता है। पर संगीत योग का अंग नहीं है। भ्रामरी प्राणायाम से संगीत का सीधा सम्बन्ध नहीं है। योग और संगीत के लिए नाद से अनहद नाद की व्याख्या भ्रामक है। यह वैज्ञानिक सोच नहीं है। वेदों और उपनिषदों से संगीत को जोड़ना भी ऐसी ही कपोल कल्पित स्थापना है। रागों की उत्पत्ति से विभिन्न देवताओं का संबंध जोड़ना भी संगीत की विश्वजनीनता को संकुचित करना है।
योग बहुत व्यापक अवधारणा है पर योग केवल चंद आसनों का नाम नहीं है। योग श्वसन क्रिया तक ही सीमित नहीं है न ही योग का कोई साम्प्रदायिक या धार्मिक आधार है। हमने योग का साम्प्रदायिकरण कर दिया है। इसमें धार्मिक पूजन, सूर्य नमस्कार आदि जोड़ कर संकुचित कर दिया है।
मनुष्य में मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक विकास के प्रति भी जागरूकता आयी जो सभी मनुष्यों में समान है। इसी शारीरिक जागरूकता का एक आयाम योग भी है। सभी देशों में इसके भिन्न भिन्न रूप प्रचलित हैं। स्वास्थ्य के लिए योग पर अंतिम निर्भरता ठीक नहीं है।
हमारे यहां योग से आयुर्वेद का भी घालमेल कर दिया गया है। दोनों अलग-अलग पद्धतियां हैं। जितनी भी चिकित्सा पद्दतियां हैं रोग की प्रकृति के अनुसार उनका महत्व है पर हम आयुर्वेद को अंतिम विकल्प मानने के दुराग्रह और हठ के रोग से ग्रसित हैं।
धर्म और अनुष्ठानों से जोड़कर हमारे यहां योग को बहुत सीमित कर दिया गया है जो चिंताजनक है।
आजकल योग की तरह संगीत को भी विभिन्न रोगों के उपचार के लिए अंतिम विकल्प के रूप में कुछ संकीर्ण सोच के तथाकथित संगीत गुरु प्रोजेक्ट कर रहे हैं। संगीत सुनना कई मानसिक व्याधियों से दूर कर सकता है। पर संगीत चिकित्सा पद्धति का अंतिम विकल्प नहीं हो सकता। कुछ उत्साही संगीत गुरु फ़िल्मी गीतों के साथ रोगों लक्षणों को बता कर उनकी चिकित्सा का दावा कर रहे हैं जो नितांत अवैज्ञानिक सोच है। संगीत सुकून देता है। सामान्य व्यवहार में परिवर्तन करता है। अनिद्रा आदि विकारों में कारगर उपाय हो सकता है लेकिन यह अंतिम विकल्प नहीं है।
इसलिए संगीत सुनिए, योग कीजिए पर बीमार होने पर सही उपचार करवाइए। साम्प्रदायिक ठगों के चक्कर में मत पढ़िए।
आप सब को विश्व संगीत दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!!
- डॉ नंदकिशोर नीलम

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