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धर्मान्तरण के लिए क्या केवल ईसाई जिम्मेदार हैं?

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३ सितम्बर, २०११ के जनसत्ता के पृष्ठ ६ पर.  मैंने इसके विरोध में जनसत्ता में अपना मत भेजा  जिसे नहीं छापा गया .. आज अनायास यह फ़ाइल हाथ आ गयी ...  संशोधित कर आप सब के लिए दे रहा हूँ .. ३ सितम्बर, २०११ के जनसत्ता के पृष्ठ ६ पर शंकर शरण जी की सेक्युलरिज्म की परिभाषा को लेकर उपजी चिंताओं से वाकीफ़ हुआ. हिंदुत्व, उसके  धर्म ग्रंथों और साधु-बाबाओं के प्रति उनकी नतमस्तकी आस्था का भी ज्ञान हुआ. उनके द्वारा लगाये गए तमाम आरोप-प्रत्यारोप और पक्ष-विपक्ष पर बहस की जबरदस्त गुंजाईश है, जिस पर निश्चित रूप से अन्य गुणीजन विचार करेंगे पर मेरा मन जिस बात पर अटका, वह है- धर्मान्तरण से सम्बंधित!  शंकर शरण जी ने लिखा है- “यहाँ अवैध धर्मान्तरण कराने वाले विदेशी ईसाई को राष्ट्रीय सम्मान दिया जाता है, जबकि अपने धर्म में रहने की अपील करने वाले हिंदू समाजसेवी को साम्प्रदायिक कहकर लांछित किया जाता है.” यहाँ प्रश्न है कि धर्मान्तरण यदि अवैध है तो इसके लिए जिम्मेदार क्या केवल ‘विदेशी ईसाई’ ही है या फिर आपका तथाकथित ‘हिंदू समाजसेवी’ भी? धर्मान्तरण अवैध क्यों है? हिंदू समाज की गल-घ

महादेवी वर्मा की काव्यानुभूति का सच

महादेवी वर्मा को याद करते हुए.....  महादेवी वर्मा के जन्मशती वर्ष के शुभारम्भ पर आज हम महादेवी वर्मा के समग्र साहित्यिक योगदान पर बात करने के लिए मिले हैं। मुझे ' महादेवी वर्मा की कविता ’ पर आप लोगों के बीच अपनी अनुभूतियां बांटने का मौका दिया गया है। महादेवी वर्मा पर बहुत लिखा गया है , बहुत शोध हुए हैं। महादेवी के समकीलन कवियों और आलोचकों द्वारा भी उनके काव्य पर विचार हुआ है , आधुनिक और समकालीन आलोचकों में आचार्य नगेन्द्र , डॉ. रामविलास शर्मा और डॉ. नामवर सिहं जैसे शीर्ष आलोचकों ने भी उनकी कविता पर विचार किया है तो डॉ. रमेशकुंतल मेघ जैसे मनोसौन्दर्यशास्त्री ने भी उनकी कविता की गंभीर पड़ताल की है। महादेवी वर्मा को अत्यन्त महिमा-मण्डित करके या तो देवी के उच्चतम स्थान पर बिठा दिया गया या अदम्य-अतृप्त वासना की शिकार कहकर उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाई गई। ये दोनों ही स्थितियां उनकी कविता की सही समझ के लिए घातक रहीं। बहुत लम्बे समय से आलोचना-जगत महादेवी के अवदान की पुनव्र्याख्या करने से उदासीन रहा। लगभग भुला देने वाली स्थिति! अब तक उनके लिए कुछ रूढ़ धारणाएं ही प्रयोग में ली जा

रामविलास शर्मा निश्चय ही 'आलोचना की दूसरी परम्परा’ के शलाका-पुरूष हैं: डॉ. शिवकुमार मिश्र

डॉ. शिवकुमार मिश्र हिन्दी-आलोचना की मार्क्सवादी धारा के गहन चिन्तक और उदार आलोचक हैं। उन्होंने मार्क्सवादी साहित्य की सैद्धान्तिक आवधारणाओं पर जो गहन विमर्श किया है , वह अद्वितीय है। यही नहीं उन्होंने हिन्दी-आलोचना की दूसरी परम्परा की अवधारणा को भी हिन्दी साहित्य में रूपायित किया। डॉ. नामवर सिंह की दूरारी परंपरा की तरह उनकी दूरारी परंपरा किसी का कद छोटा-बड़ा नहीं करती वरन भारतीय मनीषा और चिन्ताधारा के आधार पर समाज की जरुरत को देखते हुए उसके सामाजिक सरोकारों का मूल्यांकन करती है । समय-सयम पर अपने शोध कार्य के लिए मुझे उनका सहयोग मिलता रहा है। कभी पत्रों के माध्यम से तो कभी फोन पर ही और कभी-कभी साक्षात्कार के माध्यम से। यह साक्षात्कार मई , 1998 में उनके निवास आनन्द , गुजराज में रिकार्ड किया गया था। यह साक्षात्कार मेरे शोध-प्रबंध में भी प्रकाशित है. नन्द :- डॉ. साहब मैं ' हिन्दी आलोचना की दूसरी परम्परा और रामविलास शर्मा का आलोचना संसार ’ विषय पर काम कर रहा हूँ । आपने दूसरी परम्परा की अवधारणा के आधार पर कुछ लेख रामविलासज