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हिंदी कहानी पर यूँ ही चलते-चलते .....

अपने समय की तमाम जटिलताओं और क्रूरताओं को अपने कहन के केन्द्र में लाने के बावजूद समकालीन कहानी ने अपने को अधिक संवेदनशील और मानवीय बनाये रखने की भरसक कोशिश की है। समय ने यद्यपि उसके संपूर्ण रचाव को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही रूपों में झकझोरा है, फिर भी उसने अपने को अधिक अपनापे और संप्रेषण का विकल्प बनाये रखा है। इस समय में ध्वंस और सृजन ने पूरी सामथ्र्य से पाठक के चित्त और सर्जक की चेतना, दोनों को प्रभावित किया हैं। आज वैश्वीकरण के मकडज़ाल में पूरा देश उलझकर अपना खून चुसवाने को विवश है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की फैलायी मृगतृष्णा के मायाजाल में उलझकर वह हांफ रहा है। (अमेरिका की आर्थिक मंदी के बाद) देशी धन कुबेर लालों और महत्त्वाकांक्षी कैरियरिस्टों की लखटकिया नौकरियां समाप्त और खतरे में हैं।  'सेज' और 'बूट' की वजह से विस्थापित किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। धार्मिक उन्मादों का अंतहीन सिलसिला और मानवीय शोषण के अनेक कुचक्र हर दिन नये लिबास में, नई ताकत से प्रकट हो रहे हैं। इतिहास, विचार, कला, साहित्य और संस्कृति को 'अंध-धार्मिक और सांप्रदायिक' आभूषणों से