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जरूर लौटेगी गौरैया....

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गौरैया से मेरा लगाव बहुत पुराना है। बहुत छोटी उम्र में गलती या नासमझी में एक गौरेय को मैंने मार दिया था। तब से अपराध बोध से ही सही , इस चिड़िया के प्रति जीवन में अपार संवेदनशीलता है। मुझे मेरे आप-पास उसके होने का अहसास अपने जीवन और परिवेश का अनिवार्य हिस्सा लगता है। मुझे घर में पेड़-पौधे लगाने का जुनून बचपन से ही है , बहुत छोटे से घर में भी खूब पेड़-पौधे लगाया करता था। चिड़ियों की चहचाहट से ही नींद खुलती थी। घर के मोखलों में कई जगह इनके घोंसले थे। इनके दाना-पानी की व्यवस्था भी नियमित की जाती। मेरी माँ आज भी उस घर में इनके लिए नियमित दाना-पानी रखती हैं। अब बड़े शहर में रहता हूँ , जहां वाहनों का धुआँ ही धुआँ है , सीमेंट- कंकरीट के बंद जंगल हैं , अनगिनत मोबाइल टावर हैं , हरियाली का अभाव है फिर भी मैंने एक प्रयास किया है गौरैया नाम की इस चिड़िया के संरक्ष ण और संवर्धन का और मुझे खुशी है कि मैं अपनी इस मुहिम मेँ कामयाब भी रहा हूँ।   आज सुबह (09 अप्रेल 2013 ) तक मुझ