जरूर लौटेगी गौरैया....






































गौरैया से मेरा लगाव बहुत पुराना है। बहुत छोटी उम्र में गलती या नासमझी में एक गौरेय को मैंने मार दिया था। तब से अपराध बोध से ही सही, इस चिड़िया के प्रति जीवन में अपार संवेदनशीलता है। मुझे मेरे आप-पास उसके होने का अहसास अपने जीवन और परिवेश का अनिवार्य हिस्सा लगता है। मुझे घर में पेड़-पौधे लगाने का जुनून बचपन से ही है, बहुत छोटे से घर में भी खूब पेड़-पौधे लगाया करता था। चिड़ियों की चहचाहट से ही नींद खुलती थी। घर के मोखलों में कई जगह इनके घोंसले थे। इनके दाना-पानी की व्यवस्था भी नियमित की जाती। मेरी माँ आज भी उस घर में इनके लिए नियमित दाना-पानी रखती हैं।
अब बड़े शहर में रहता हूँ, जहां वाहनों का धुआँ ही धुआँ है, सीमेंट-कंकरीट के बंद जंगल हैं, अनगिनत मोबाइल टावर हैं, हरियाली का अभाव है फिर भी मैंने एक प्रयास किया है गौरैया नाम की इस चिड़िया के संरक्षऔर संवर्धन का और मुझे खुशी है कि मैं अपनी इस मुहिम मेँ कामयाब भी रहा हूँ।  
आज सुबह (09 अप्रेल 2013) तक मुझे पता नहीं था कि 2010 से हर साल 20 मार्च को ‘‘गौरैया दिवस’’ मनाया जाता है। जब आज के जनसत्ता अखबार में आकांक्षा यादव जी का आलेख लौट आओ गौरैया पढ़ा तो यह जानकारी मिली। इस आलेख को पढ़ कर इस चिड़िया के बारे मे बहुत सी जानकारी मिली जो मुझे नहीं पता थी। चिड़िया की जीवन शैली, उसके व्यवहार, खान-पान आदि की मेरी समझ भले ही बहुत प्रामाणिक और वैज्ञानिक नहीं हो पर मेरे अपने कुछ अलग अनुभव हैं। मैंने घंटों इन गौरैया को देखा-परखा-जाना-समझा है। एक तरह का रागात्मक रिश्ता है मेरा इनके साथ!
यहाँ मैं आकांक्षा जी की बातों को काट नहीं रहा हूँ, बस अपने उन अनुभवों को साझा कर रहा हूँ जो मैंने वर्षों से सँजोये हैं। मेरा उद्देश्य बस यही है कि गौरैया नाम की इस चिड़िया को बचाने में जो कोई भी, कहीं भी जुटा हो वह इन उपायों और अनुभवों को काम मेँ लाकर अपना सहयोग दे सके।  
हमारा पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से बदल रहा है, इस बदलाव के चलते हमने खुद को और हमारे आस-पास को अपने रहने लायक बनाया ही है तो फिर हम थोड़ा प्रयत्न करके इस वातावरण को पक्षियों के अनुकूल क्यों नहीं बना सकते! मैंने अपने घर में, घर के बाहर और आस-पास खूब पेड़-पौधे लगाए हैं और दूसरों को भी प्रेरित किया है। इस तरह मैंने एक सुरक्षित और सुकून भरा माहौल पक्षियों के लिए तैयार किया है। विशेष तौर पर गौरैया के लिए।
मैंने इनके घोंसले बनाने की अपनी तकनीक विकसित की है, और मजे की बात यह है कि इन चिड़ियों ने इसे स्वीकार भी किया है। मैं घास, दूब, तिनके और कूलर की जाली वाली घास से एलबो आकार का आधा-अधूरा सा घोंसला दीवार पर लटकाए लोहे के डिब्बों, लटकाये हुए मिट्टी के बर्तनों और दो लीटर वाली पलास्टिक की आधी कटी बोतलों में बना देता हूँ। गौरैया फिर अपने आप इसे सही रूपाकार दे देती है।
मेरा अबतक का अनुभव यह कहता है कि यह चिड़िया पेड़ों पर शायद ही कभी घोंसला बनाती हो, गाँव-गलियारों की बात तो नहीं कह सकता पर किसी शहर में मैंने इस चिड़िया का घर कभी पेड़ पर नहीं देखा! मेरे आस-पास सुबह से शाम तक बीसियों गौरैया चहचहाती हैं। मैंने पेड़ की ऊंची डालियों पर भी इनका घर बनाने की कोशिश की है पर इन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया, यहाँ तक की हम जिसे कमेड़ी कहते हैं, उसने भी ऊँचाई पर बने घोंसले को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि कमेड़ी पेड़ पर तो घोंसला बनाती है लेकिन गहरे झुरमुट में और अपेक्षाकृत नीचाई पर। इसलिए यदि हम सच में ही इस चिड़िया गौरैया को विलुप्त नहीं होने देना चाहते हैं तो हमें अपने घर की बाहरी दीवारों के ऐसे ऊंचे और सुरक्षित स्थान पर इस चिड़िया का घर बनाना चाहिए जहां बिल्ली ना पहुँच सके। इनके अंडों और चूजों को सबसे बड़ा खतरा बिल्ली से ही होता है।
हम दूषित होते पर्यावरण, रासायनिक पदार्थ, कीटनाशक, आज के बंद घरों और मोबाइल टावरों पर ही सारा दोषारोपण ना करके यदि दृढ़ इच्छा शक्ति से यह तय कर लें कि हमें गौरैया का संरक्षण-संवर्धन करना ही है तो ये बाधाएँ कमजोर पड़ जाएंगी। मैंने इन बाधाओं को परास्त किया है। अपने घर की बाहरी दीवारों पर लोहे के डिब्बों, प्लास्टिक की बोतलों और मिट्टी के गुल्लक नुमा बर्तनों से घोंसले बनाए हैं। जहां पर अक्सर लोग सुंदरता के लिए फूलदान लटकाते हैं वहाँ मैंने मिट्टी की गुल्लक के कृत्रिम घोंसले लटकाए हैं। यह सही है कि कीटनाशकों से कीड़े मर जाते हैं और गौरैया का कुदरती भोजन लार्वा खत्म हो रहा है पर इसका विकल्प भी है। मैंने घोंसले से गिर गए कई बहुत छोटे चूजों को (जो सिर्फ मांस के लोथड़े जैसे थे) रुई के फाहे से दूध पिला कर फिर थोड़ा बड़ा होने पर दूध में ब्रेड की खीर जैसा गाढ़ा पदार्थ पिला कर जीवित रखा है और पूरी तरह विकसित हो जाने पर खुले आसमान में छोड़ दिया है। हम अपने आँगन में चिड़िया के घोंसले के नीचे कटोरी में दूध में ब्रेड भिगोकर रख सकते हैं, कीट-पतंगे नहीं मिलने पर चिड़िया बड़े चाव से यह वैकल्पिक चुग्गा अपने चूजों को खिलाएगी। हमारी तरह ये पक्षी भी पर्यावरण से संतुलन कायम करने की कोशिश करके अपने आप को बदलते हैं। गौरैया भी ऐसा करती है यह मैंने बराबर महसूस किया है।           
मैंने यह महसूस किया है कि गौरैया के संरक्षऔर संवर्धन को लेकर भी और मुद्दों की तरह सिर्फ नारेबाजी ज्यादा हो रही है। सही दिशा में सकारात्मक काम नहीं हो रहा है। डाक टिकट निकालना, राज्य पक्षी घोषित करना, विश्व गौरैया दिवस मनाना तब ही सार्थक है जब हमारा रागात्मक रिश्ता गौरैया से कायम हो। हम उसके होने के अहसास को अपने जीवन और परिवेश का अनिवार्य हिस्सा मानें। उसकी कमी हमें खले। पर ये सब नहीं हो रहा है। गौरैया के विलुप्त होने की चिंता करते तो बहुत लोग दिख जाते हैं, बहुत लोग सिर्फ दाना-पानी रख कर ही अपना कर्तव्य पूरा मान लेते हैं, बहुत से लोग धर्म से प्रेरित हो पुण्य कमाने के लिहाज से ही दाना डालते हैं, चिड़िया बचे या न बचे इससे उनको कोई सरोकार नहीं होता। इस तरह से गौरैया के फिर से हमारे आस-पास लौटने की संभावनाओं को हम ध्वस्त करते हैं। गौरैया के लिए किए गए मेरे प्रयास बहुत सीमित हैं, मेरे पास कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, अपनी समझ और अनुभव से जो कुछ भी मैंने सीखा है वह बहुत थोड़ा है, अभी बहुत कुछ किया जा सकता है। सबको करना चाहिए। मेरे फेसबुक खाते drnkneelam@facebook.com (nandkishore neelam) और ब्लॉग आरोहण http://nandneel.blogspot.com पर आप मेरे उन प्रयासों को देख सकते हैं जो मैंने गौरैया के लिए किये हैं   

टिप्पणियाँ

  1. uncle.. i know that writing in the manner you write can ever be my cup of tea... but highly support "arohan".. may be we keep on just having discussions on conservation and protection but we rarely act on this.. there are various acts and protection guidelines given by ministry.. but its true as you said that they can never attain the goal till we show are will and put a step forward.. i'l ask the youth to join the above cause...

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  2. गौरैया के लिए इतना लगाव कभी किसी व्यक्ति में नहीं देखा मैंने! इतनी करुणा, इतना दुलार और इतनी जहीन समझ तो पक्षी वैज्ञानिकों में होती है. प्रकृति और प्राणी जगत के अपने प्रगाढ़ प्रेम को आपने फिर से प्रमाणित किया है. आप का यह समर्पण अनुकरणीय है.

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  3. एक गौरैया यहां http://akaltara.blogspot.in/2011/03/blog-post_18.html भी देख सकते हैं.

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  4. १.राहुलजी, आपकी पोस्ट देखी. यह मेरी जानकारी बढ़ाने वाली है. सालिम अली जी बहुत बड़े पक्षी विज्ञानी और पर्यावरण प्रेमी थे. उनके प्रयास हमेशा अनुकरणीय रहेंगे. मैं तो एक साधारण अध्यापक हूँ. जो थोडा-बहुत कर पाया हूँ उसे और अधिक करना है. आपका आभार जो अपने इस पोस्ट को पढ़ने की सलाह दी.

    २.अनुराधा और पंखुरी का भी आभार, आपने जो विश्वास मुझमें जताया है, वह मेरे प्रयत्नों को और गति देगा.

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