संदेश

जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
  संगीत, योग और आयुर्वेद संगीत सम्पूर्ण जीवन का आधार है। इससे प्रकृति भी आबद्ध है। मनुष्य के अस्तित्व के साथ ही संगीत विकसित हुआ है। मनुष्य में कलाओं के विकास का आदि रूप संगीत ही है। चित्रकला, नृत्य, साहित्य आदि उसके बाद आए। मनुष्य के रुदन-हास का रचाव संगीत से है। उसके उत्सव और शोक संगीत से आबद्ध हैं। संगीत, साहित्य और कलाओं के समस्त माध्यम मनुष्य की समस्त अनुभूतियों और अभिव्यक्तियों के माध्यम हैं। योग का आगमन मनुष्य जीवन में बहुत बाद में हुआ। योग का सीधा संबंध संगीत से नहीं है। योग और संगीत पूरक नहीं है। संगीत योग का रूप नहीं है। योग को कालांतर में सभी विधाओं-कलाओं पर आरोपित किया गया है, जबरन थोपा गया है। योग संगीत का एक अंग हो सकता है। संगीत के लिए जो अनुशासन चाहिए योग उसमें मददगार हो सकता है। पर संगीत योग का अंग नहीं है। भ्रामरी प्राणायाम से संगीत का सीधा सम्बन्ध नहीं है। योग और संगीत के लिए नाद से अनहद नाद की व्याख्या भ्रामक है। यह वैज्ञानिक सोच नहीं है। वेदों और उपनिषदों से संगीत को जोड़ना भी ऐसी ही कपोल कल्पित स्थापना है। रागों की उत्पत्ति से विभिन्न देवताओं का संबंध जोड़ना भी संगी