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भाजपा का 'राम राग-चुनावी'

चुनाव आते ही भाजपा राम - मंदिर का राग छेड़ देती है । आडवानी जी ने इस बार भी राम - मंदिर बनाने की बात कही है । यह राम राग - चुनावी है जो हर चुनाव में भाजपा की आदत बन गयी है । इस सम्बन्ध में मुझे यागेन्द्र आहूजा की कहानियों पर ' परिकथा ' पत्रिका के मई - जून २००९ अंक में छपे अपने आलेख - " विकट अंधियारे में प्रतिरोध की उजली हँसी : योगेन्द्र आहूजा की कहानियां " की याद आ रही है जिसमे मैंने लिखा था .... " संप्रदयिकता और इससे उत्पन्न अन्यान्य समस्याओं के विश्वव्यापी प्रभाव ने योगेन्द्र के मर्म पर भी गहरी चोट की है, जिसका रचनात्मक प्रतिफलन है उनके ‘ अँधेरे में हँसी ’ संकलन की ‘ अँधेरे में हँसी ’ और ‘ मर्सिया ’ कहानियां. इन कहानियों की खासियत यह है कि ये बिना हाहाकार मचाये एक गहरी व्यंजना में सांप्रदायिकता के खुनी चेहरे को उघाड़ देती हैं. यथार्थ के नाम पर खूनी-खेल के खबरिया वर्णन न करके कहानीकार ने इस समय की विडम्बना को ‘ सार्थक विडम्बना ’ के रूप में पुनर्सृजित किया है. ‘ अँधेरे में हँसी ’ कहानी में य