विजेन्द्रजी हमारे समय की जीवंत काव्य विरासत है
विजेन्द्रजी हमारे समय की जीवंत काव्य विरासत है।
मठाधीश आलोचकों, तानाशाह संपादकों और महान कवियों के लाख नकारने के बाद भी
समय की छलनी ने यह साबित कर दिया है कि...वे हमारे जटिल समय के बहुत जरुरी कवि हैं।
वे लोकधर्मी चेतना के कवि हैं। उनकी लोक चेतना लोक जीवन के रूढिगत बंधनों से मुक्त करती है। नयी पीढ़ी के कवियों के लिए वे लोक कविता के संवाहक हैं। समकालीन लोककविता (और लम्बी कविता) में चरित्र को लेकर उन्होंने जो प्रयोग किये हैं वे दुर्लभ हैं।
ये समय लोक और लोक कविता को सही सन्दर्भों में समझने का है। लोक के प्रति हमें भाववादी रुझान से मुक्त होना पड़ेगा। अपनी सोच को बड़ा बनाना पड़ेगा। लोक, लोक जीवन और लोक कविता के बद्धमूल शास्त्रीय निष्कर्षों से मुक्त होकर आज के जीवन की लोक धड़कन को सुनना होगा।
विजेंद्र की लोकधर्मी कविता के मूल्यांकन के लिए 'लोकरंग और जीवन राग की आलोचना' की दरकार है। जिसको हमारे समय के प्रबुद्ध आलोचक डॉ. जीवन सिंह साध रहे हैं। जीवन सिंह की आलोचना 'लोकरंग और जीवन राग की आलोचना' है।
हमारे समय में एक साथ तीन - तीन पीढियां कविता कर्म में संलग्न हैं. विजेंद्र यहाँ हर पीढ़ी के लिए एक 'कहावत' बन गए हैं। उनकी कविता 'लोक-लालित्य' से सराबोर है। विजेंद्र लोक कविता के आधार स्तम्भ हैं। राजस्थान ही नहीं, पूरे हिंदी साहित्य को उन पर गर्व होना चाहिए।
मैं जनता हूँ राजस्थान में उनके साथ कितना औछा बर्ताव किया जाता रहा है।
उन पर शोध कार्य करवाने के लिए मुझे कितना संघर्ष विश्वविध्यालय के महान अध्यापकों से करना पड़ा था।
उनके अनुसार विजेंद्र की कविता पी-एच डी के योग्य ही नहीं थी।
ये बात वे लोग कह रहे थे जिनकी खुद की थीसिस प्रमाणिक रूप से आपत्तिजनक थी।
बहरहाल विजेंद्रजी पर अब एक नहीं लगभग 15 जगह पी-एच डी हो रही है।
राजस्थान मैं यह शुरुआत मेरे संघर्ष से मेरे निर्देशन मैं हुई है। देर से ही सही शुरुआत तो हुई है।
"घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध" ज्यादा दिन तक सही नहीं रह सकता।
अब जड़ताएँ तोड़ने का समय है, और तोड़ी भी जा रही है.....
अच्छा लिखा है. पर कंजूसी कर गए. और काफ़ी कुछ जोड़ सकते थे.ब्लॉग की शुरुआत पर बधाई.
जवाब देंहटाएंआप सच कह रहे हैं सर. विजेन्द्र जी पर बहुत लिखा जा सकता है. इधर विजेन्द्र जी पर एक आलेख लिखने में जुटा हूँ. पूरा होते ही ब्लॉग पर पोस्ट करूँगा.
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